अनुभूति में डॉ
जेन्नी शबनम
की रचनाएँ—
छंदमुक्त
में-
अंतिम पड़ाव अंतिम सफ़र
छोटी सी चिड़िया
दंभ हर बार
टूटा
देह, अग्नि और आत्मा-जाने
कौन चिरायु
पलाश के बीज गुलमोहर के फूल
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पलाश के बीज -
गुलमोहर के फूल
याद है तुम्हे
उस रोज़ चलते चलते
राह के अंतिम छोर तक
पहुँच गए थे हम,
सामने एक पुराना सा मकान
जहाँ पलाश के पेड़
और उसके खूब सारे
लाल लाल बीज,
मुट्ठी में बटोर कर
हम ले आये थे,
धागे में पिरो कर
गले का हार बनाया,
बीज के ज़ेवर को पहन
दमक उठी थी मैं
और तुम बस मुझे देखते रहे,
मेरे चेहरे की खिलावट में
कोई स्वप्न देखने लगे,
कितने खिल उठे थे न हम !
अब क्यों नहीं चलते
फिर से किसी राह पर,
बस यूँ हीं
साथ चलते हुए
उस राह के अंत तक
जहाँ गुलमोहर के पेड़ों की
कतारें हैं,
लाल-गुलाबी फूलों से सजी
राह पर
यूँ हीं बस...
फिर वापस लौट आऊँगी
यूँ हीं खाली हाथ
एक पत्ता भी नहीं
लाऊँगी अपने साथ !
२५ अक्तूबर २०१० |