अनुभूति में
डॉ
जेन्नी शबनम
की रचनाएँ—
छंदमुक्त
में-
अंतिम पड़ाव अंतिम सफ़र
छोटी सी चिड़िया
दंभ हर बार
टूटा
देह, अग्नि और आत्मा-जाने
कौन चिरायु
पलाश के बीज गुलमोहर के फूल
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अंतिम पड़ाव
अंतिम सफ़र
जाने कैसा भटकाव था
या कि कोई पड़ाव था,
नहीं मालुम क्या था
पर न जाने क्यों था,
मुमकिन कि वहीं ठहर गई
या कि रास्ते ख़त्म हुए !
दरख़्त के साए में
कुछ पौधे भी मुरझा जाते हैं,
कौन कहे कि चले जाओ
सफ़र के नहीं हमराही हैं,
वक़्त की मोहताज़ नहीं
पर वक़्त से कब हारी नहीं?
चलो भूल जाओ काँटों को
ज़ख्म समेट लो,
सिर पर ताज हो
और पाँव में छाले हों,
हँसते हीं रहना फिर भी
शायद यह अभिशाप हो !
वादा किया है कि
मन में हँसी भर दोगे,
उम्मीद ख़त्म हुई हीं कहाँ
अब भी इंतज़ार है...
कोई एक हँसी
कोई एक पल,
वो एक सफ़र
जो पड़ाव था,
शायद रुक जाएँ
हम दोनों वहीं,
उसी जगह गुज़र जाए
पहला और अंतिम सफ़र !
२५ अक्तूबर २०१० |