अनुभूति में डॉ
जेन्नी शबनम
की रचनाएँ—
छंदमुक्त
में-
अंतिम पड़ाव अंतिम सफ़र
छोटी सी चिड़िया
दंभ हर बार
टूटा
देह, अग्नि और आत्मा-जाने
कौन चिरायु
पलाश के बीज गुलमोहर के फूल
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देह, अग्नि और
आत्मा- जाने कौन चिरायु
जलती लकड़ी पर जल डाल दें
अग्नि बुझ जाती, कुछ धुएँ उठते हैं,
राख शेष रह जाती है
कुछ अधजले अवशेष बचते हैं,
अवशेष को, जब चाहें जला दें
जब चाहें बुझा दें !
क्या हमारे मन की अग्नि को
कोई जल बुझा सकता है ?
क्या एक बार बुझ जाने पर
अवशेष को फिर जला सकते हैं ?
क्यों सिर्फ बच जाती देह और साँसें ?
आत्मा मर जाती है
जबकि कहते कि, आत्मा तो अमर है !
नहीं समझ पाई अब तक, क्यों होता ऐसा
आत्मा अमर है, फिर मर क्यों जाती ?
क्यों नहीं सह पाती, क्रूर वेदना
या फिर, कठोर प्रताड़ना
क्यों बुझा मन, फिर जलता नहीं ?
नहीं नहीं, बहुत अवसाद है, शायद,
इंसान की तुलना, अग्नि से ?
नहीं नहीं, कदापि नहीं,
अग्नि तो पवित्र होती,
हम इंसान हीं, अपवित्र होते !
शायद...
इसीलिए...
देह, अग्नि और आत्मा
जाने कौन चिरायु ?
कौन अमर ??
कौन...???
२५ अक्तूबर २०१० |