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अनुभूति में दीपाली सुतार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
औरतें
गुफाओं का राज
नापाक भाषा
ये तुम भी जानते हो
शब्द गाते हैं
 

  ये तुम भी जानते हो

ये तुम भी जानते हो
इस वक्त तुम्हारा बोलना
बेमतलब है!
क्योंकि, तुम्हारी कहानी अब बहस में है
कौन? कब?...प्लॉट बदल देगा
ये जान भी नहीं पाओगे

सच तो ये है-
इस दूषित हवा का
तुम खुद भी हिस्सा बने हो
जो अपनी जेब में छुरी लिए घूम रहे हो
क्या पता...तुम भी
किसी की कहानी बदलने लगो!

इससे पहले तुम अपना रुख मोड़ लो।

१ अक्टूबर २०२३

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