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अनुभूति में दीपाली सुतार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
औरतें
गुफाओं का राज
नापाक भाषा
ये तुम भी जानते हो
शब्द गाते हैं
 

  औरतें

पता नहीं वह औरतें कौन थीं
कहाँ से आयी थीं
मैले कपड़ों में
सर पर पल्लू ओढ़े
सुबह के शोर में गुम थी
माथे की लाल बिंदी
लगा जैसे कई कहानियाँ सुना रहीं हों।

एक--- खोयी हुई थी कहीं
शायद! अपने अधूरे सपनों में
एक--- अपनी बच्ची के सँवार रही थी बाल
मेरी नजर अचानक उस धुएँ पर पड़ी
बीड़ी फूँककर
अपने को ठंड से बचा रही थी-- तीसरी औरत।

उसकी मुस्कुराहट में लगा जैसे
चाहती है उस धुएँ में खुद धुआँ हो जाना।

हाथ में चिप्स के पैकेट लिए
खेल रहे थे अधनंगे बच्चे
और अपने में गुम
उस शोर में उनकी माँएँ लिख रही थीं
अपनी खामोश कहानियाँ।

१ अक्टूबर २०२३

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