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अनुभूति में दीपाली सुतार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
औरतें
गुफाओं का राज
नापाक भाषा
ये तुम भी जानते हो
शब्द गाते हैं
 

  नापाक भाषा

अफवाहें फैलायी गयी
कि उनमें दोष हैं
चरित्रहीन!
नापाक हैं वे।

खबरे आने लगीं
मुकदमा लड़ा गया
कई सारे लड़े गए
कठघरे में खड़ा कर दिया गया
बार-बार कहकर कि ‘यह भाषा नापाक है!'

शब्द रोने लगे कि
अब उनका अर्थ खो चुका है।
दफनाया गया उनके व्याकरण को
हिंसा द्वारा बनायी गयी कब्र में।

ठप्प
फैसला सुनाया गया
‘अभिव्यक्ति की दुनिया से इन्हें निकाल दिया जाएँ’
कैद कर दिया गया उन्हें
परंपराओं में।

अब याद किया जाएगा उन्हें
बस इतिहास में।

१ अक्टूबर २०२३

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