अनुभूति में
भोलानाथ कुशवाहा
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
कविता लौटी नहीं
कहीं से
बिना फँसे
राग दरबारी की अवतारणा
सबके लिये
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सबके लिये
कोयल की तुलना में
गिलहरी को
कौन पूछता है
परन्तु वह
अपने तरीके से जीती है
पेड़ की सबसे ऊँची
टहनी पर
चढ़कर नजारा लेती है
खूब कूदती-फाँदती
और दौड़ती है
एक डाल से
दूसरी डाल पर
खुद तलाशती है
अपने लिए
भोजन-पानी
क्या फर्क पड़ता है
कि वह
मीठा नहीं बोल पाती
मगर हल्ला मचा कर
खतरे से सावधान
करती है सबको
और तब कोयल
पीऊ-पीऊ कर
निकल जाती है
अपने साथी की तलाश में
१ फरवरी २०१६
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