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अनुभूति में भोलानाथ कुशवाहा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कविता लौटी नहीं
कहीं से
बिना फँसे
राग दरबारी की अवतारणा
सबके लिये

 

कविता लौटी नहीं

उस दिन
जब कविता ने घर के बाहर
क़दम रखा
लोगबाग़ कतई तैयार नहीं थे
कि वह
डेहरी डाँके

एक ने कहा-
'बन्धन में ही
आकर्षक लगती हो'

दूसरे ने कहा-
'अनुशासन से ही
तुम्हारा सौन्दर्य निखरता है'

तीसरे ने कहा-
'यह मुक्ति तुम्हारे पतन का
कारण बनेगी'

चौथे ने
लौट आने के लिए
आवाज़ लगाई

कविता
लौटी नहीं
उसने सारे अलंकार उतार दिए
और झोपड़पट्टी में
घुस गई
आम आदमी का
जीवन जीने के लिए

१ फरवरी २०१६

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