अनुभूति में
भोलानाथ कुशवाहा
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
कविता लौटी नहीं
कहीं से
बिना फँसे
राग दरबारी की अवतारणा
सबके लिये
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कहीं से
कहीं से
शुरू करते हैं
वहीं से
शुरू करते हैं
आइए!
चाँद को निहारते हैं
तारों को गिनते हैँ
नदी की धार से
सूरज को
निकलते देखते हैं
कहीं से
शुरू करते हैं
वहीं से
शुरू करते हैं
आइए!
शहर को निहारते हैं
गलियों को गिनते हैं
चौराहों के बीच से
भीड़ को निकलते देखते हैं
कहीं से
शुरू करते हैं
वहीं से
शुरू करते हैं
आइए!
आदमी को निहारते हैं
रिश्तों को गिनते हैं
सुखों के बीच से
दुखों को
निकलते देखते हैं
कहीं से
शुरू करते हैं
वहीं से
शुरू करते हैं
१ फरवरी २०१६
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