अनुभूति में
भोलानाथ कुशवाहा
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
कविता लौटी नहीं
कहीं से
बिना फँसे
राग दरबारी की अवतारणा
सबके लिये
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बिना फँसे
कितना सुखद है
हरी घास पर बैठना
कभी कभार
उस पर लेटना
आसपास के छोटे-छोटे
पौधों को निहारना
उनकी जातियों-प्रजातियों पर चर्चा करना
चलने से पहले उनका
आभार व्यक्त करना
कितना सुखद है
बड़े पेड़ की छाया में
बैठकर धूप पर
बहस करना
मुरझाई वनस्पतियों के लिए
दो मिनट का समय देना
सूखे ताल- तलैयों की
तलहटी में फटी
बेवाइयों पर
विमर्श करना
कितना सुखद है
छाते के नीचे से
बारिश का
मजा लेना
गर्म कपड़ों में
ठंड को
सेलिब्रेट करना
और कहीं भी
किसी के साथ
बिना फँसे
धीरे से निकल लेना
१ फरवरी २०१६
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