अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अनिल कुमार पुरोहित की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
अंधा युद्ध
उसके लिये
कोरा कागज
जुआरी
रूढ़ियाँ

छंदमुक्त में-
आत्मन
आशा
नया मंजर
भय
साज और धुन

 

नया मन्जर

कैसा गूँज रहा अट्टहास
इन शहरों से,
पिघल रहा, पत्थर पहाड़ों के।
कैसी उठ रही सिसकियाँ
इन गलियारों से
सरक रहे जंगल,
शहरों की सीमाओं से।
सारे वहशी जानवर
डरे सहमे से तक रहे
कोई इन्सान न दिख जाये।
पिघलते पत्थर
सरकते जंगल
सहमे जानवर
देख नजारे सारे
सागर सारा टिक रह गया
कोटर में मेरी आँख के
बूँद एक आँसू की बन
न बह रहा न टपक रहा।

२८ अप्रैल २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter