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भय
उतरता एक गिद्ध
दूर ऊँची, चोटी पहाड़ियों से
लहराता, मचलता-
झरनों सा मदमस्त,
हवा की तरंगों पर झूमता
पेड़ों के झुरमुट से
आँख मिचोली करता।
निगाहें दौड़ाता - चारों तरफ़
पर लक्ष्य कर चुका
अपना सिद्ध।
धीरे-धीरे, परछाईं उसकी
बढ़ रही जमीन पर
उससे भी बड़ी, भयानक
और
देख जिसे, स्तंभित
नन्हा शशक शावक।
२८ अप्रैल २०१४
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