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अनुभूति में उत्कर्ष अग्निहोत्री की रचनाएँ—

अंजुमन में--
अपना रुतबा छोड़ दिया
ज़माने को जब तोलती हैं किताबें
मुसलसल ज़ाफ़रानी
मेरे नजदीक गीतावली
हर घड़ी याद

 

ज़माने को जब तोलती हैं किताबें

ज़माने को जब तोलती हैं किताबें
ज़ुबां तोतली बोलती हैं किताबें

न जब कोई बोले ज़माने में तुमसे
अकेले में तब बोलती हैं किताबें

ज़रा जाके पढ़िए तो फिर आप ही को
परत दर परत खोलती हैं किताबें

नज़र जो भी देखे लगे वो ही प्यारा
ज़हन में ये क्या घोलती हैं किताबें

सिखाती हैं ये ढंग जीने का बेशक
नदी जैसी कल्लोलती हैं किताबें

१ दिसंबर २०२३

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