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अनुभूति में उत्कर्ष अग्निहोत्री की रचनाएँ—

अंजुमन में--
अपना रुतबा छोड़ दिया
ज़माने को जब तोलती हैं किताबें
मुसलसल ज़ाफ़रानी
मेरे नजदीक गीतावली
हर घड़ी याद

 

मेरे नजदीक गीतावली

मेरे नजदीक गीतावली हो गई
वो गली जब से तेरी गली हो गई

छू गया कोई सपने में आकर मुझे
शख्सियत फिर मेरी संदली हो गई

भर लिया तुमको आँखों में गंगा समझ
और ये दृष्टि गंगाजली हो गई

अनगिनत ज्योति के पुंज तुमको दिखे
तुमको देखा तो दीपावली हो गई

राधिका से मिले कृष्ण उज्ज्वल हुए
और फिर राधिका साँवली हो गई

१ दिसंबर २०२३

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