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अनुभूति में उत्कर्ष अग्निहोत्री की रचनाएँ—

अंजुमन में--
अपना रुतबा छोड़ दिया
ज़माने को जब तोलती हैं किताबें
मुसलसल ज़ाफ़रानी
मेरे नजदीक गीतावली
हर घड़ी याद

 

मुसलसल ज़ाफ़रानी

मुसलसल ज़ाफ़रानी हो रही है
नज़र जितनी पुरानी हो रही है

उन्हें कुछ काम हमसे आ पड़ा है
तभी तो मेह्रबानी हो रही है

ज़ुबाँ की क़द्र क्या बच्चे करें जब
घरों में बदज़ुबानी हो रही है

नदी को छू रहा है एक सूरज
तभी तो पानी-पानी हो रही है

अधूरापन लिए बैठे हैं दोनों
मुकम्मल इक कहानी हो रही है

वो सच्ची शायरी है अब भी मुझमें
उसी की तर्जुमानी हो रही है

गुलों में रंग हैं खुशबू है ग़ायब
अजब ये बाग़बानी हो रही है

१ दिसंबर २०२३

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