अनुभूति में
तरुणा मिश्रा की रचनाएँ-
अंजुमन में-
आ गए तूफान में
इक जरा सी दिल्लगी
न तुम बेचैन होते
मिलता नहीं
मुझसे मत पूछो
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न तुम बेचैन होते
न तुम बेचैन होते यूँ न हम भी आह यूँ भरते
कभी दावा मुहब्बत का न तुम करते न हम करते
जिसे देखो ज़फाओं की तलब लगती उसी को है
सभी उकता गए हैं अब वफ़ा का दम नहीं भरते
ख़ुशी तुमको हुई हासिल हमारा दिल दुखाकर तो
भला अब क्यों तकल्लुफ़ है दुबारा काम वो करते
सभी ख़ुशियाँ ज़माने की मयस्सर हो तुम्हें जायें
हमेशा तो यही चाहा दुआ अब भी यही करते
ख़ुलूसो-सादगी से हम बयाँ करते रहे सच को
डरे तब भी नहीं थे हम अभी भी हम नहीं डरते
तुम्हारी बेहिसी ने उफ़! तड़प ऐसी मुझे दी है
मिटेगी अब न जीते जी मिटेगी अब मिरे मरते
समझ पाए न तुम ये तब समझ अब भी न पाओगे
चलो छोड़ो गिला-शिकवा भला अहसान क्यों धरते
१ जून २०१५
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