अनुभूति में
तरुणा मिश्रा की रचनाएँ-
अंजुमन में-
आ गए तूफान में
इक जरा सी दिल्लगी
न तुम बेचैन होते
मिलता नहीं
मुझसे मत पूछो
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आ गए तूफान में
दूर करके, हम किनारा आ गए तूफान में
देखना है जोर कितना अब बचा इस जान में
ख़ूबसूरत आशियाना तो बना हमने लिया
थी मगर ख़ुशियाँ बहुत टूटे हुए दालान में
फूल-तितली चाँद-तारों में अज़ब ख़ुश्बू मिली
वो चमक दिखती नहीं अब क़ीमती सामान में
दश्त की चाहत जिसे हो या तलब सहरा की हो
प्यास उसकी क्या बुझेगी अब किसी बारान में
इश्क़ में बेचैनियाँ जिसको मिली हो अनगिनत
फिर मज़ा आता कहाँ उसको है इत्मीनान में
नासमझ बनता रहा लफ़्ज़ो-नज़र से जो मेरी
प्यार को ढूँढा किए हम भी उसी नादान में
अज़नबी हम हो गए तो कुरबतें कुछ हो गईं
फ़ासला कितना रहा बरसों रही पहचान में
भूल जाओ तुम मुझे मैं भी भुला दूँगी तुम्हें
दोस्ती खोई हमारी एक उस अहसान में
सौ दफ़ा मानी तुम्हारी बात नावाज़िब सभी
क्या गज़ब सी हर अदा तेरी रही फरमान में
१ जून २०१५
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