अनुभूति में
तरुणा मिश्रा की रचनाएँ-
अंजुमन में-
आ गए तूफान में
इक जरा सी दिल्लगी
न तुम बेचैन होते
मिलता नहीं
मुझसे मत पूछो
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इक जरा सी दिल्लगी
इक जरा सी दिल्लगी थी तिश्नगी बढ़ती गई
अब मेरी दिल की लगी में बंदगी बढ़ती गई
ये ग़ज़ब रानाइयाँ तो हुस्न में पहले भी थीं
इश्क़ ने देखा अदा से तुर्फ़गी बढ़ती गई
दिलजलों ने दिल जला कर रोशनी कितनी भी की
बात तो कुछ बन न पाई तीरगी बढ़ती गई
खोल डाला हर गिरह को इश्क़ में मैंने मगर
ज़हनो-दिल में और भी पेचीदगी बढ़ती गई
कुछ क़दम वो भी बढ़े कुछ मैं बढ़ी उनकी तरफ़
काविशें की थी मगर बेगानगी बढ़ती गई
इक जरा से लुत्फ़ को निकली जो घर से मैं कभी
बाद इसके तो मेरी आवारगी बढ़ती गई
१ जून २०१५
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