अनुभूति में
तरुणा मिश्रा की रचनाएँ-
अंजुमन में-
आ गए तूफान में
इक जरा सी दिल्लगी
न तुम बेचैन होते
मिलता नहीं
मुझसे मत पूछो
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मिलता नहीं
आरज़ू जिसकी मुझे थी वो बशर मिलता नहीं
हैं सभी मेरे यहाँ पर हमसफ़र मिलता नहीं
ढूँढने जिनको भी निकली मंज़िलें वो सब मिलीं
खो गई हर राह मेरी और घर मिलता नहीं
वापसी का रास्ता आख़िर मैं ढूँढूँ किस तरह
रात है कितनी अँधेरी राहबर मिलता नहीं
चाँद उगता हो जहाँ तारे हज़ारों हों खिले
फूल मुस्काते सभी हों वो नगर मिलता नहीं
दुश्मनों की बेदिली भी काम अब आती नहीं
दोस्तों की दोस्ती में भी असर मिलता नहीं
कल तलक सब साथ थे पत्ते परिंदे डालियाँ
जो हरा हर दम रहे ऐसा शज़र मिलता नहीं
१ जून २०१५
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