अनुभूति में
सुशील गौतम की रचनाएँ-
अंजुमन में-
असर मेरी मुहब्बत का
एक कतरा हूँ
तुम गए तो
तुम मिले तो
सुलगती धूप में
संकलन में-
नया साल-
आया फिर नया वर्ष |
' |
तुम गए तो
तुम गए तो नीम जैसी जिन्दगानी हो गई
ये करेले से भी कड़वी इक कहानी हो गई।
फूल खुश्बू तितलियाँ हैं पर सुहानापन नहीं
शाम जैसे भीड़ रहते भी विरानी हो गई।
छाँव ना आती नज़र अब देखता जिस ओर भी
जिन्दगी ये धूप की ज्यों राजधानी हो गई।
इस कदर काँटे मिले हैं जिन्दगी में अब तलक
जिन्दगी लगता मेरी इक खारदानी हो गई।
कोई भी मुश्किल मुझे अब ना करे विचलित ज़रा
हर मुसीबत से मिरी यारी पुरानी हो गई।
चाँदनी मुझको जलाती औ डसें तारे मुझे
दुश्मनी मेरी ख़ुशी से खानदानी हो गई।
दिन सुहाने जाफ़रानी हो हवा जैसे गए
जिन्दगी मेरी महज़ अब कारखानी हो गई। २० जनवरी २०१४ |