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आया फिर नया वर्ष
 
आया फिर नया वर्ष, कुछ भी ना नया हुआ
बोलो क्या नया हुआ ?

शैशव इस देश का, रोटी को तरस रहा
सावन भी झीलों के, ऊपर ही बरस रहा
यौवन को ढँकने को, कपड़े नहिं पास में
जीवन ये गुज़र गया, इक छत की आस में
जारी है खेल यही, बरसों से चला हुआ
बोलो क्या नया हुआ ?

रिश्ते सब स्वारथ के, करुणा न प्यार है
हर घर के आँगन में, देखो दीवार है
भ्रष्टाचार देश में, हर तरफ पनप रहा
शिष्टाचार का यहाँ, आज दम निकल रहा
आतंकी सीना भी, देखो है तना हुआ।
बोलो क्या नया हुआ ?

बढ़ती है दिन दूनी, रातों को चार गुनी
महँगाई करती है, सबकी ही अनसुनी
खर्चे न घटते हैं, बढती न आमदनी
सच्चाई सुनकर भी, करते सब अनसुनी
संप्रदाय का तनाव, ज्यों का त्यों बना हुआ
बोलो क्या नया हुआ ?

-सुशील कुमार गौतम
३० दिसंबर २०१३

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