अनुभूति में
सुशील गौतम की रचनाएँ-
अंजुमन में-
असर मेरी मुहब्बत का
एक कतरा हूँ
तुम गए तो
तुम मिले तो
सुलगती धूप में
संकलन में-
नया साल-
आया फिर नया वर्ष |
' |
एक कतरा हूँ
एक कतरा हूँ समुन्दर हूँ नहीं ये गम नहीं
दूसरों की प्यास खातिर मैं नदी से कम नहीं।
हूँ भले किरदार छोटा पर बड़ा खुद्दार हूँ
सामने सुल्तान के भी हो ये गर्दन ख़म नहीं।
जब लिखूँगा सच लिखूँगा सख्त बेशक वो लगे
रोक दे मेरी कलम को है किसी में दम नहीं।
प्यार वो करती मुझे मैं एक अरसे से उसे
पर अभी तक एक दूजे से मिले हैं हम नहीं।
ख्वाब में आकर सतातीं याद आतीं हर समय
दूर रह कर भी कभी भी दूर रहतीं तुम नहीं।
जब दुआ माँ की लगे तो सूख जाते ज़ख्म वे
इस जहाँ में आज तक जिनकी बनी मरहम नहीं।
साथ जब देता न कोई याद आता है खुदा
याद तू करता खुदा को किसलिए हरदम नहीं।
आज इस बाज़ार युग में बिक रही हर चीज़ जब
तब कलम 'गौतम' न बिकती अब बिके 'गौतम' नहीं। २० जनवरी २०१४ |