अनुभूति में
सुशील गौतम की रचनाएँ-
अंजुमन में-
असर मेरी मुहब्बत का
एक कतरा हूँ
तुम गए तो
तुम मिले तो
सुलगती धूप में
संकलन में-
नया साल-
आया फिर नया वर्ष |
' |
सुलगती धूप में
सुलगती धूप में शीतल हवाएँ चलने लगती हैं
असर जब भी फकीरों की दुआएँ करने लगती हैं।
पहुँचते हो तभी दर पे तभी माथा रगड़ते हो
गुनाहों की तुम्हारे जब सजाएँ मिलने लगती हैं।
हमेशा साथ में रहती दुआ माँ की इसी कारण
बड़ी हों वे भले जितनीं बलाएँ टलने लगती हैं।
दुआ भी ठीक होने की दवा के साथ जब मिलती
असर अपना तभी पूरा दवाएँ करने लगती हैं।
खड़क सकता न पत्ता भी इज़ाज़त के बिना उसकी
खुदा चाहे तो आँधी में शमाएँ जलने लगती हैं।
सितारा डूबने लगता तेरी किस्मत का जब "गौतम"
तुझे बदले भलाई के जफ़ाएँ मिलने लगती हैं।
२० जनवरी २०१४ |