अनुभूति में
सुरेन्द्रपाल वैद्य की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
जरा सी बात पर
मन की बातों को
याद आया फिर
सही है ये
अंजुमन में-
अजनबी सी राह पर
आये बादल
धार के विपरीत चलना
भाग रहे सब
मौसम
सुहाना |
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धार के विपरीत चलना
सीख लें हम अब समय की धार के विपरीत चलना,
जूझने का नाम ही है हार के विपरीत चलना।
ध्येय निष्ठा से भरा मन साथ लेकर ही बढ़ें हम,
पुण्य के हित सीख लें कुविचार के विपरीत चलना।
पाँव में ठोकर लगे तो और भी मजबूत हो मन,
ठोकरों से जूझकर हर हार के विपरीत चलना।
सींचकर निज आँसुओं से हर दुखी को राहतें दो,
दुष्टजन के साथ के आधार के विपरीत चलना।
देशहित का भाव लेकर कर्मपथ पर बढ़ चलें सब,
और सीखेँ भोग के अधिकार के विपरीत चलना।
७ अप्रैल
२०१४ |