ज़िंदगी
मधुरतम अहसास-सी है ज़िंदगी
महकते मधुमास-सी है ज़िंदगी
चल बटोही राह में अविराम चल
गहन दृढ़ विश्वास-सी है ज़िंदगी
लहर बनकर तो नदी की देखिए
नित नए उल्लास-सी है ज़िंदगी
आस को छोड़ो न अंतिम साँस तक
पपीहे की प्यास-सी है ज़िंदगी
घोर सन्नाटा-उदासी के पलों में
वेदनामय हास-सी है ज़िंदगी
बर्फ़ बनकर गर कभी पिघले नहीं
घुटनमय संत्रास-सी है ज़िंदगी
छंद-लय-तुक-ताल गर कुछ भी नहीं
एक टूटे साज़-सी है ज़िंदगी
कल्पना के पंख फैलाए रहें
तो खुले आकाश-सी है ज़िंदगी
हो गईं मृतप्राय इच्छाएँ अगर
एक ज़िंदा लाश-सी
ज़िंदगी!
01 फरवरी 2007
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