अनुभूति में
शंभुनाथ तिवारी
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
क्या कहें जिंदगी
खूब दिलकश
दिल्ली में
मुश्किल है
लोग क्या से क्या
अंजुमन में-
आँखों के कोर भिगोना क्या
कौन यहाँ खुशहाल
जिगर में हौसला
ज़िंदगी
नहीं कुछ भी
बेकरार क्या करता
हैरानी बहुत है
हौसले मिटते नहीं |
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आँखों को कोर
भिगोना क्या
बेमतलब आँखों के कोर भिगोना क्या
अपनी नाकामी का रोना-रोना क्या
बेहतर है कि समझें नब्ज़ ज़माने की
वक़्त गया फिर पछताने से होना क्या
भाईचारा-प्यार-मुहब्बत नहीं अगर
तब रिश्ते-नातों को लेकर ढोना क्या
जिसने जान लिया ये दुनिया फ़ानी है
उसे फूल या काटों भरा बिछोना क्या
क़ातिल को भी क़ातिल लोग नहीं कहते
ऐसे लोगों का भी होना-होना क्या
मज़हब ही जिसकी दरवेश फक़ीरी है
उसकी नज़रों में क्या मिट्टी, सोना क्या
जहाँ नहीं कोई अपना हमदर्द मिले
उस नगरी में रोकर आँखें खोना क्या
मुफ़लिस जिसे बनाकर छोड़ा गर्दिश ने
उस बेचारे का जगना भी सोना क्या
फिक्र जिसे लग जाती उसकी मत पूछो
उसको जंतर-मंतर-जादू-टोना क्या
६ अप्रैल २०१५ |