अनुभूति में
शंभुनाथ तिवारी
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
क्या कहें जिंदगी
खूब दिलकश
दिल्ली में
मुश्किल है
लोग क्या से क्या
अंजुमन में-
आँखों के कोर भिगोना क्या
कौन यहाँ खुशहाल
जिगर में हौसला
ज़िंदगी
नहीं कुछ भी
बेकरार क्या करता
हैरानी बहुत है
हौसले मिटते नहीं |
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खूब दिलकश
खूब दिलकश जहान होता है
वक़्त जब मेहरबान होता है
सुबह से शाम तक गुजर जाना
रोज इक इम्तिहान होता है
आह दिल में मिठास होंठों पर
घर अगर मेहमान होता है
गूँजती हो जहाँ पे किलकारी
वह मकाँ ही मकान होता है
आँधियाँ ही मिटा गईं पल में
रेत का क्या निशान होता है
सिर्फ़ रोटी में एक मुफ़लिस का
बस मुक़म्मल जहान होता है
ज़िंदगी के उदास लम्हों में
आदमी बेजुबान होता है
हौसला देखिए परिंदे में
हर घड़ी खतरे-जान होता है
देखना उस गरीब बेवा को
जिसका बेटा जवान होता है
१५ अप्रैल
२०१६ |