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अनुभूति में शंभुनाथ तिवारी की रचनाएँ-

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जिगर में हौसला
ज़िंदगी
नहीं कुछ भी
बेकरार क्या करता

हैरानी बहुत है
हौसले मिटते नहीं

 

नहीं कुछ भी

नहीं कुछ भी बताना चाहता है
वह आख़िर क्या छिपाना चाहता है

रुलाया है ज़माने भर को उसने
मगर खुद मुस्कराना चाहता है

लगाकर आग गुलशन में भला वह
मुकम्मल आशियाना चाहता है

बहाकर बेगुनाहों का लहू वह
मसीहा भी कहाना चाहता है

ज़रा-सी बात है बस रोशनी की
वो अपना घर जलाना चाहता है

रहे दुनिया हमेशा उसके जैसी
ये शायद हर दीवाना चाहता है

एक कतरा हथेली पर सजाकर
वो समंदर बनाना चाहता है

जुर्म सहकर जुबाँ से कुछ न बोलूँ
यही मुझसे ज़माना चाहता है

परिंदे में है इतना हौसला बस
फलक के पार जाना चाहता है

सभी की चुप्पियाँ यह कह रही हैं
जुबाँ तक कुछ तो आना चाहता है!

01 फरवरी 2007

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