अनुभूति में शहरयार की रचनाएँ-
अंजुमन में-
ऐसे हिज्र के मौसम
किया इरादा
ये काफिले यादों के
सीने में जलन
सूरज का सफर खत्म हुआ
हद-ए-निगाह तक ये ज़मीं
हम पढ़ रहे थे
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ये काफिले यादों के
ये काफिले यादों
के कहीं खो गए होते
इक पल अगर भूल से हम सो गए होते
ऐ शहर तेरा नामो-निशाँ भी नहीं होता
जो हादसे होने थे अगर हो गए होते
हर बार पलटते हुए घर को यही सोचा
ऐ काश किसी लम्बे सफर को गए होते
हम खुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
अजदाद कहीं पेड़ भी कुछ बो गए होते
किस मुँह से कहें तुझसे समंदर के हैं हकदार
सैराब सराबों से भी हम हो गए होते
२० फरवरी २०१२
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