अनुभूति में शहरयार की रचनाएँ-
अंजुमन में-
ऐसे हिज्र के मौसम
किया इरादा
ये काफिले यादों के
सीने में जलन
सूरज का सफर खत्म हुआ
हद-ए-निगाह तक ये ज़मीं
हम पढ़ रहे थे
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सीने में जलन
सीने में जलन आँखों में तूफान सा
क्यूँ है
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूँ है
दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यूँ है
तन्हाई की ये कौन सी मन्ज़िल है रफीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है
हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-ए-पशेमान पशेमान सा क्यूँ है
क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है
२० फरवरी २०१२
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