अनुभूति में शहरयार की रचनाएँ-
अंजुमन में-
ऐसे हिज्र के मौसम
किया इरादा
ये काफिले यादों के
सीने में जलन
सूरज का सफर खत्म हुआ
हद-ए-निगाह तक ये ज़मीं
हम पढ़ रहे थे
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किया इरादा
किया इरादा बारहा तुझे भुलाने का
मिला न उज़्र ही कोई मगर ठिकाने का
ये कैसी अजनबी दस्तक थी कैसी आहट थी
तेरे सिवा था किसे हक मुझे जगाने का
ये आँख है कि नहीं देखा कुछ सिवा तेरे
ये दिल अजब है कि ग़म है इसे ज़माने का
वो देख लो वो समंदर खुश्क होने लगा
जिसे था दावा मेरी प्यास को बुझाने का
ज़मीं पे किस लिये ज़ंजीर हो गए साये
मुझे पता है मगर मैं नहीं बताने का
२० फरवरी २०१२
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