अनुभूति में शहरयार की रचनाएँ-
अंजुमन में-
ऐसे हिज्र के मौसम
किया इरादा
ये काफिले यादों के
सीने में जलन
सूरज का सफर खत्म हुआ
हद-ए-निगाह तक ये ज़मीं
हम पढ़ रहे थे
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हद-ए-निगाह तक ये ज़मीं
हद-ए-निगाह तक ये ज़मीं है सियाह
फिर
निकली है जुगनुओं की भटकती सिपाह फिर
होंठों पे आ रहा है कोई नाम बार-बार
सन्नाटों की तिलिस्म को तोड़ेगी आह फिर
पिछले सफर की गर्द को दामन से झाड़ दो
आवाज़ दे रही है कोई सूनी राह फिर
बेरंग आसमान को देखेगी कब तलक
मंज़र नया तलाश करेगी निगाह फिर
ढीली हुई गिरफ्त जुनूँ की कि जल उठा
ताक-ए-हवस में कोई चराग़-ए-गुनाह फिर
२० फरवरी २०१२
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