अनुभूति में
राम अवध विश्वकर्मा
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
गुलों में रंग न खुशबू
चाहे जितना हाथ-पाँव मारे
दिलों में जो हैं दूरियाँ
ये मस्जिद और ये मंदर
हम पहली बार |
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ये मस्जिद और ये मंदर
ये मस्जिद और ये मंदर अभी भी
उजाड़ेंगे हजारों घर अभी भी !
तरक्क़ी का ज़माना है तो लेकिन
बहुत से खेत हैं बंजर अभी भी !
अचम्भे में सभी को डाल देगा
दिखा कर खेल जादूगर अभी भी !
वहाँ पर घर बनाकर क्या करेंगे
बरसते हों जहाँ पत्थर अभी भी !
वजह तुम ही हो जो सूखे पड़े हैं
हमारे गाँव के पोखर अभी भी !
वही होगा जो मैं चाहूँगा देखो
मेरी मुट्ठी में हैं अवसर अभी भी !
२० अगस्त २०१२ |