अनुभूति में
राम अवध विश्वकर्मा
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
गुलों में रंग न खुशबू
चाहे जितना हाथ-पाँव मारे
दिलों में जो हैं दूरियाँ
ये मस्जिद और ये मंदर
हम पहली बार |
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चाहे जितना हाथ-पाँव मारे
चाहे जितना हाथ-पाँव मारे या
कोशिश कर ले वो
मुमकिन-नहीं-कि-अब-दरिया-के-चंगुल-से-बच-निकले-वो।
ठोकर खाकर धरती पर मुँह के बल गिरना जुर्म नहीं
लेकिन अपराधी है गिरकर भी न कभी जो संभले वो।
आग बबूला सूरज भी आखिर ठंडा हो जाएगा
उससे कहो रखे कुछ धीरज थोड़ी गर्मी सह ले वो।
कब तक दौड़ेगा साहब वो उसी पुराने ढर्रे पर
दुनियादार बने थोड़ा-सा अपने आप को बदले वो।
घर के भीतर सहमे-सहमे बैठे रहना ठीक नहीं
लाठी लेकर बाहर आए साँपों का सर कुचले वो।
आईने में चेहरा देखे उसके बस की बात नहीं
सोच रहा है किसी तरह से अपना चेहरा ढक ले वो।
केवल हाकिम से मिलने से कुछ भी काम नहीं होगा
दफ्तर का दस्तूर सीख ले चपरासी से मिल ले वो।
२० अगस्त २०१२ |