अनुभूति में
राम अवध विश्वकर्मा
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
गुलों में रंग न खुशबू
चाहे जितना हाथ-पाँव मारे
दिलों में जो हैं दूरियाँ
ये मस्जिद और ये मंदर
हम पहली बार |
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हम पहली बार
हम पहली बार ही नहीं अक्सर निकल
गए
काँटों के बीच राह बनाकर निकल गए।
घर में था दोस्त बच्चों ने फिर भी ये कह दिया
पापा तो आज जल्दी ही दफ्तर निकल गए।
कोई कमी नहीं थी मदरसों की शहर में
फिर भी तमाम बच्चे निरक्षर निकल गए।
वे लोग तो अंधे न थे बहरे न थे मगर
चुपचाप जुल्म देखा, पलटकर निकल गए।
तुमने तो आज तक मारी न कोई मेंढकी
बच्चे तुम्हारे फिर भी सिकंदर निकल गए।
तरकश के तीर रह गए तरकश में सब के सब
कच्चे घड़े-से अपने मुकद्दर निकल गए।
२० अगस्त २०१२ |