अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में राम अवध विश्वकर्मा की रचनाएँ-

अंजुमन में-
गुलों में रंग न खुशबू
चाहे जितना हाथ-पाँव मारे
दिलों में जो हैं दूरियाँ
ये मस्जिद और ये मंदर
हम पहली बार

 

दिलों में जो हैं दूरियाँ

दिलों में जो हैं दूरियाँ वो मिटा दें
चलो जिन्दगी को मुहब्बत बना दें

बुजुर्गों से है इल्तजा ये दुआ दें
मुसीबत के मारे हुए मुस्कुरा दें

कोई राम रहमान से जा के कह दे
न फिरकापरस्ती को इतनी हवा दें

अनाड़ी हैं मल्लाह खूँखार दरिया
ये डर है कहीं वो न कश्ती डुबा दें

कभी हाथ पर हाथ रख कर न बैठें
अँधेरा अगर हो तो दीपक जला दें

यहाँ दाल उनकी नहीं गलने वाली
उन्हें साफ लफ्जों में सब कुछ बता दें

२० अगस्त २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter