अनुभूति में
राम अवध विश्वकर्मा
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
गुलों में रंग न खुशबू
चाहे जितना हाथ-पाँव मारे
दिलों में जो हैं दूरियाँ
ये मस्जिद और ये मंदर
हम पहली बार |
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दिलों में जो हैं दूरियाँ
दिलों में जो हैं दूरियाँ वो मिटा दें
चलो जिन्दगी को मुहब्बत बना दें
बुजुर्गों से है इल्तजा ये दुआ दें
मुसीबत के मारे हुए मुस्कुरा दें
कोई राम रहमान से जा के कह दे
न फिरकापरस्ती को इतनी हवा दें
अनाड़ी हैं मल्लाह खूँखार दरिया
ये डर है कहीं वो न कश्ती डुबा दें
कभी हाथ पर हाथ रख कर न बैठें
अँधेरा अगर हो तो दीपक जला दें
यहाँ दाल उनकी नहीं गलने वाली
उन्हें साफ लफ्जों में सब कुछ बता दें
२० अगस्त २०१२ |