अनुभूति में
पंकज कुमार मिश्र वात्स्यायन की रचनाएँ—
अंजुमन में—
कहे मादरे वतन
कैसे कह दूँ, अच्छा है
गुनगुना दे सखी
बता दे मन
ये ही इनाम है
हे! परी हो क्या
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कैसे कह दूँ,
अच्छा है
भूखा प्यासा सोया ऐसे, जाने किसका बच्चा है।
गाँधी जी इस लोकतंत्र को, कैसे कह दूँ अच्छा है।
चाँद सितारों तक पर जब है, गिद्ध दृष्टि नेताओं की।
तब तक बहुजन हित का नारा, कैसे कह दूँ सच्चा है।
छद्म वाद है समता-वमता, सब पुस्तक की बातें हैं।
संविधान को ब्लैक कोट का, लिखूँ खेल ये इच्छा है।
जब तक मासूमों के, तन पर वस्त्र, पेट में अन्न नहीं।
तब तक अक्षर संविधान का, सिर्फ अंगूरी गुच्छा है।
शर्म हया बाक़ी हो तो, दीवारों संसद की बोलो।
क्यों न मिटी अब तक बीमारी, सड़क कर रही पृच्छा है।
जिसको इन सारी बातों में, किंचित भी संदेह लगे।
खुद के भीतर झाँकें-ताँकेँ, अभी तो पंकज कच्चा है।
१ अगस्त २०१६ |