अनुभूति में
पंकज कुमार मिश्र वात्स्यायन की रचनाएँ—
अंजुमन में—
कहे मादरे वतन
कैसे कह दूँ, अच्छा है
गुनगुना दे सखी
बता दे मन
ये ही इनाम है
हे! परी हो क्या
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गुनगुना दे सखी
शब्द हैं, भाव हैं, गुनगुना दे सखी।
मेरी ग़ज़लों को, अब तो जगा दे सखी।
फागुनी ऋतु है आयी, उमंगे तो भर।
कूक कानों को मेरे, सुना दे सखी।
देख शृंगार धरती ने, भी कर लिया।
रंग मेरा तू मन पे, चढ़ा दे सखी।
इस मनस वाटिका में भी, पतझर हुआ।
स्वप्न के पात नूतन, खिला दे सखी।
मैं भी बेसुध मगन, झूमना चाहता।
अपने अधरों से हाला, पिला दे सखी।
१ अगस्त २०१६ |