अनुभूति में
पंकज कुमार मिश्र वात्स्यायन की रचनाएँ—
अंजुमन में—
कहे मादरे वतन
कैसे कह दूँ, अच्छा है
गुनगुना दे सखी
बता दे मन
ये ही इनाम है
हे! परी हो क्या
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कहे मादरे वतन
तुम फ़र्ज़ तो निभाओ, कहे मादरे वतन।
तुम क़र्ज़ तो चुकाओ, कहे मादरे वतन।।
कब तक लड़ा करोगे, यों ही धर्म के लिये।
अब लाज तो बचाओ, कहे मादरे वतन।
बिगड़ी हुई फ़िज़ा को, बदलने के वास्ते।
कुछ भार तो उठाओ, कहे मादरे वतन।
समता व एकता की तरफ, ले के जो चले।
वह मार्ग तो बनाओ, कहे मादरे वतन।
नफ़रत नफर नफर के है जो दिल दिमाग़ में।
वो भित्ति तो गिराओ, कहे मादरे वतन।
'पंकज' सभी के मन में है जो भेद-भावना।
विष-व्याल तो मिटाओ, कहे मादरे वतन।
१ अगस्त २०१६ |