अनुभूति में
पंकज कुमार मिश्र वात्स्यायन की रचनाएँ—
अंजुमन में—
कहे मादरे वतन
कैसे कह दूँ, अच्छा है
गुनगुना दे सखी
बता दे मन
ये ही इनाम है
हे! परी हो क्या
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हे! परी हो
क्या
अद्भुत अकल्पनीय रूप, हे! परी हो क्या?
मेरे लिए ही मानवीय तन, धरी हो क्या?
साजे भँवर कपोल मन्द मुस्कुराहटें।
मन को डुबाने वाली रूप गागरी हो क्या?
आवाज़ में खनक झनक गज़ब है साज सी।
होंठों पे धरूँ बाँसुरी, हे! साँवरी हो क्या?
अब तो तुम्हीं हो सिर्फ मेरा योग-ध्यान सब।
सच सच कहो रचयिता की जादूगरी हो क्या?
तुमको भला लिखूँ मैं क्या कहो ज़रा तुम्हीं।
प्रतिमान रूप का कोई हे! सुंदरी हो क्या?
१ अगस्त २०१६ |