अनुभूति में
ओम प्रकाश यती की रचनाएँ—
नई रचनाएँ-
कितने टूटे कितनों का मन हार गया
छिपे हैं मन में जो
छीन लेगी नेकियाँ
बुरे की हार हो जाती है
हँसी को और
खुशियों को
अंजुमन में-
अँधेरे जब ज़रा
आदमी क्या
इक नई कशमकश
खेत सारे छिन गए
नज़र में आजतक
बहन बेटियाँ
बहुत नज़दीक
बाबू जी
मन में मेरे
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हँसी को
और खुशियों को
हँसी को और खुशियों को हमारे साथ रहने दो
अभी कुछ देर सपनों को हमारे साथ रहने दो
तुम्हें फ़ुरसत नहीं तो जाओ बेटा,आज ही जाओ
मगर कुछ रोज़ बच्चों को हमारे साथ रहने दो
हरा सब कुछ नहीं है इस धरा पर, हम दिखा देंगे
ज़रा सावन के अन्धों को हमारे साथ रहने दो
ये जंगल कट गए तो किसके साए में गुज़र होगी
हमेशा इन बुज़ुर्गों को हमारे साथ रहने दो
ग़ज़ल में, गीत में, मुक्तक में ढल जाएँगे ये इक दिन
भटकते फिरते शब्दों को हमारे साथ रहने दो
२९
अक्तूबर २०१२ |