अनुभूति में
ओम प्रकाश यती की रचनाएँ—
नई रचनाएँ-
कितने टूटे कितनों का मन हार गया
छिपे हैं मन में जो
छीन लेगी नेकियाँ
बुरे की हार हो जाती है
हँसी को और
खुशियों को
अंजुमन में-
अँधेरे जब ज़रा
आदमी क्या
इक नई कशमकश
खेत सारे छिन गए
नज़र में आजतक
बहन बेटियाँ
बहुत नज़दीक
बाबू जी
मन में मेरे
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छीन लेगी नेकियाँ
छीन लेगी
नेकियाँ ईमान को ले जाएगी
भूख दौलत की कहाँ इंसान को ले जाएगी
आधुनिकता की हवा अब तेज़ आँधी बन गई
सोचता हूँ किस तरफ़ संतान को ले जाएगी
शहर की आहट हमें सड़कें दिखाएगी नई
फिर हमारे खेत को, खलिहान को ले जाएगी
बेचकर गुर्दे, असीमित धन कमाने की हवस
किस जगह इस दूसरे भगवान को ले जाएगी
सिन्धु हो, सुरसा हो, कुछ हो किन्तु इच्छाशक्ति तो
हैं जहाँ सीता वहाँ हनुमान को ले जाएगी
गाँव की बोली तुझे शर्मिंदगी देने लगी
ये बनावट ही तेरी पहचान को ले जाएगी
२९ अक्तूबर २०१२
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