अनुभूति में
ओम प्रकाश यती की रचनाएँ—
नई रचनाएँ-
कितने टूटे कितनों का मन हार गया
छिपे हैं मन में जो
छीन लेगी नेकियाँ
बुरे की हार हो जाती है
हँसी को और
खुशियों को
अंजुमन में-
अँधेरे जब ज़रा
आदमी क्या
इक नई कशमकश
खेत सारे छिन गए
नज़र में आजतक
बहन बेटियाँ
बहुत नज़दीक
बाबू जी
मन में मेरे
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अँधेरे जब ज़रा
अँधेरे जब ज़रा-सी रौशनी से भाग जाते हैं
तो फिर क्यों लोग डरकर ज़िन्दगी से भाग जाते हैं
हमें मालूम है फिर भी नहीं हम खिलखिला पाते
बहुत से रोग तो केवल हँसी से भाग जाते हैं
निभाने हैं गृहस्थी के कठिन दायित्व हमको ही
मगर कुछ लोग इस रस्साकशी से भाग जाते हैं
यहाँ इक रोज़ हड्डी रीढ़ की हो जाएगी ग़ायब
चलो ऐसा करें इस नौकरी से भाग जाते हैं
लिखा था बालपन का सुख यशोदा-नन्द के हिस्से
तभी तो कृष्ण काली कोठरी से भाग जाते हैं
२८ मार्च २०११
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