अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मयंक अवस्थी की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
इक चाँद तीरगी में
इसी खातिर
बैठे हो जिसके खौफ़ से छुपकर
मेरे आगे

अंजुमन में-
कभी यकीन की दुनिया में
खुशफहमियों में चूर

भाव महफिल में
हवाओं के रुख

 

मेरे आगे

मेरे आगे बड़ी मुश्किल खड़ी है
मेरी शोहरत मेरे कद से बड़ी है

चले आओ कि सदियाँ हो चुकी हैं
तरस खाओ कि नर्गिस रो पड़ी है।

हवाओं में जो चिंगारी थी अब तक
वो अब जंगल के दिल में जा पड़ी है

कोई आतिशफिशाँ है दिल में मेरे
मेरे होंठो पे कोई फुलझड़ी है

तेरा जूता सभी सीधा करेंगे
तेरे जूते में चाँदी जो जड़ी है

उधर इक दर इधर इस घर की इज्जत
अभी दहलीज़ पे लड़की खड़ी है

मयंक आवारगी की लाज रखना
तुम्हारी ताक में मंजि़ल खड़ी है

१ नवंबर २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter