अनुभूति में
मयंक अवस्थी
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
इक चाँद तीरगी में
इसी खातिर
बैठे हो जिसके खौफ़ से छुपकर
मेरे आगे
अंजुमन में-
कभी यकीन की दुनिया में
खुशफहमियों में चूर
भाव महफिल
में
हवाओं के
रुख |
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इसी खातिर
इसी ख़ातिर तो
उसकी आरती हमने उतारी है
ग़ज़ल भी माँ है और उसकी भी शेरों की सवारी है
मुहब्बत धर्म है हम शायरों का दिल पुजारी है
अभी फ़िरकापरस्तों पे हमारी नस्ल भारी है
सितारे, फूल जुगनू चाँद, सूरज हैं हमारे संग
कोई सरहद नहीं ऐसी अजब दुनिया हमारी है
वो दिल के दर्द की खुश्बू आलम है कि मत पूछो
तुम्हारी राह में ये उम्र जन्नत में गुज़ारी है
ये दुनिया क्या सुधारेगी हमें, हम तो हैं दीवाने
हमीं लोगों ने अबतक अक्ल दुनिया की सुधारी है
१ नवंबर २०१७ |