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अनुभूति में मयंक अवस्थी की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
इक चाँद तीरगी में
इसी खातिर
बैठे हो जिसके खौफ़ से छुपकर
मेरे आगे

अंजुमन में-
कभी यकीन की दुनिया में
खुशफहमियों में चूर

भाव महफिल में
हवाओं के रुख

 

भाव महफिल में

भाव महफिल में दिखाता हूँ अमीरों की तरह
छुप के ख़ैरात भी लेता हूँ फ़क़ीरों की तरह

दूर के ढोल नज़र आयें कहीं मुझको बस
उठ के आदाब में बजता हूँ मजीरों की तरह

नक्श पानी पे बनाता हूँ इसी हसरत में
कोई कह दे इन्हें पत्थर की लकीरों की तरह

रात दिन बस तेरी यादों के थपेड़े खाकर
क़ैद हूँ आज समन्दर में जज़ीरों की तरह

ढाई आखर का मुझे इल्म नहीं है फिर भी
चाहता हूँ कि पढ़ा जाउँ कबीरों की तरह

२ जनवरी २०१२

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