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अनुभूति में मयंक अवस्थी की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
इक चाँद तीरगी में
इसी खातिर
बैठे हो जिसके खौफ़ से छुपकर
मेरे आगे

अंजुमन में-
कभी यकीन की दुनिया में
खुशफहमियों में चूर

भाव महफिल में
हवाओं के रुख

 

कभी यकीन की दुनिया में

कभी यकीन की दुनिया में जो गये सपने
उदासियों के समन्दर में खो गये सपने

बरस रही थी हक़ीकत की धूप घर बाहर
सहम के आँख के आँचल में खो गये सपने

कभी उड़ा के मुझे आसमान तक लाए
कभी शराब में मुझको डुबो गये सपने

हमीं थे नींद में जो उनको सायबाँ समझा
खुली जो आँख तो दामन भिगो गये सपने

खुली रही जो मेरी आँख मेरे मरने पर
सदा–सदा के लिये आज खो गये सपने

२ जनवरी २०१२

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