अनुभूति में
कृष्ण सुकुमार की रचनाएँ
गीतों में-
आँसू, सपने, दर्द, उदासी
कितना गहरा है सन्नाटा
किन्हीं क्षणों में
कुछ पल एहसासों के जी लें
नहीं भूलते फूल
रोज सवेरा
श्रमिक अँधेरों को धुनते हैं
अंजुमन में-
उठाने के लिए नुक़्सान
उदासी के दरख्तों पर
किसी गुजरे हुए
न जाने क्यों
सफल वे हैं
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रोज सवेरा
रोज़ सवेरा शुरू होता है
प्रतिपल गहराती दहशत से
रोज़ एक आतंकित चिड़िया
उड़ने का विश्वास खोजती
रोज़ हमारे विश्वासों की
हत्या कर जाता हत्यारा
रोज़ लहु बरसा जाता है
उन्मादी मौसम आवारा
टप-टप धूप टपकती जैसे
बच्चों की आँखों से आँसू
रोज़ उजालों के चिथड़ों में
नई सुबह उल्लास खोजती
रोज़ हमारे एहसासों में
पैने पंजे गड़ जाते हैं
नये दौर में रोज़ हमारे
दुष्ट हौसले बढ़ जाते हैं!
रोज़ एक सपना आँखों से
बाहर आ कर दिन बन जाता
रोज़ उदासी अपने भीतर
जीने का एहसास खोजती
अँगारों पर बैठी तितली
रोज़ आग कितना पीती है
रोज़ हवा में फैली ख़ुशबू
छलनी हो कर भी जीती है
रोज़ प्यास से मरता मौसम,
रोज़ प्यास ख़ुशबू हो जाती
रोज़ शरारत करता पानी,
नदिया अपनी प्यास खोजती
मैं जो भी दूँगा वह सब कुछ
लौटा देगा समय एक दिन
थोड़ा-थोड़ा रोज़ जलूँ तो
सूरज होगा उदय एक दिन
रोज़ सफ़र कम हो जाता है,
रोज़ रास्ते बढ़ जाते हैं
रोज़ थकावट-आशावादी
मंज़िल अपने पास खोजती
१४
अप्रैल २०१४ |