अनुभूति में
कृष्ण सुकुमार की रचनाएँ
गीतों में-
आँसू, सपने, दर्द, उदासी
कितना गहरा है सन्नाटा
किन्हीं क्षणों में
कुछ पल एहसासों के जी लें
नहीं भूलते फूल
रोज सवेरा
श्रमिक अँधेरों को धुनते हैं
अंजुमन में-
उठाने के लिए नुक़्सान
उदासी के दरख्तों पर
किसी गुजरे हुए
न जाने क्यों
सफल वे हैं
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कितना गहरा है
सन्नाटा
चींखों के अस्थिर तल पर
स्थिर ठहरा है सन्नाटा
कितना गहरा है सन्नाटा!
मैंने हर आक्रोश पिया है
बिना प्यास के पानी जैसा,
घेर रहा है मुझे कुहासा
बीती हुई कहानी जैसा!
मैं अपने को खोज रहा हँू
मुझ पर पहरा है सन्नाटा!
हर मौसम आता है जैसे
कोई शरणागत आता हो,
रोज़ हवा के होठों से यों
लगता, क़ातिल मुस्काता हो!
क्रमशः आँखें खोल रहा है,
बहुत सुनहरा है सन्नाटा!
सूख चुकी अमृत की बूँदें
प्यास बुझाने वाले जल में,
क्षुब्ध चेतना खोजे तृप्ति
सागर के खारे आँचल में!
ऊँघ रहा है तट पर पसरा,
शायद बहरा है सन्नाटा!
कुछ पल को लगता है मानों
जीवन की सच्चाई पा ली,
जैसे सपने की धन-दौलत
जगने पर हो जाये खाली
आजीवन मन के खंडहर पर
ध्वज-सा फहरा है सन्नाटा
१४
अप्रैल २०१४ |