अनुभूति में
कृष्ण सुकुमार की रचनाएँ
गीतों में-
आँसू, सपने, दर्द, उदासी
कितना गहरा है सन्नाटा
किन्हीं क्षणों में
कुछ पल एहसासों के जी लें
नहीं भूलते फूल
रोज सवेरा
श्रमिक अँधेरों को धुनते हैं
अंजुमन में-
उठाने के लिए नुक़्सान
उदासी के दरख्तों पर
किसी गुजरे हुए
न जाने क्यों
सफल वे हैं
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नहीं भूलते फूल
नहीं भूलते फूल
गंध अपनी फैलाना,
नहीं भूलती नदी
निरंतर बहते जाना,
नहीं भूलता सूरज
रोज़ सवेरे उगना,
नहीं भूलता पानी
सबकी प्यास बुझाना!
जाने हम इंसान
भूल जाते हैं कैसे
इंसानों के बीच
बने रहना इंसान!
सोच-सोच कर मैं
अक्सर होता हैरान!
सोच-सोच कर मैं अक्सर होता हैरान!
नहीं लौटते
बचपन और जवानी जैसे,
नहीं लौटता वक़्त
नदी का पानी जैसे,
नहीं लौटते शब्द
जीभ से फिसल गये जो,
नहीं लौटती यादें
बहुत पुरानी जैसे!
हम जाने क्यों
आदिम युग को
लौट रहे हैं,
स्थापित करने को
निज बर्बर पहचान!
सोच-सोच कर मैं
अक्सर होता हैरान!
सोच-सोच कर मैं अक्सर होता हैरान!
१४
अप्रैल २०१४ |